दिसम्बर 6, 2025

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JNU Election Result 2025: लेफ्ट की लहर या विचारधारा की वापसी? चारों सीटों पर बढ़त, ABVP पिछड़ी — जानिए क्यों यह चुनाव बना देशभर की चर्चा का विषय

नई दिल्ली, 6 नवंबर 2025:
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) एक बार फिर देश की राजनीति का सूक्ष्म मॉडल बन गया है। यहां चल रही छात्रसंघ चुनाव की मतगणना ने पूरे देश की निगाहें अपनी ओर खींच ली हैं। जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2025 (JNUSU Election 2025) में शुरुआती रुझानों के मुताबिक लेफ्ट यूनिटी (Left Unity) ने चारों प्रमुख पदों — अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव — पर बढ़त बना ली है, जबकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) काफी पीछे चल रही है।


🔹लेफ्ट की वापसी की कहानी – 5540 वोटों की गिनती के बाद रुझान साफ

ताजा आंकड़ों के अनुसार, अब तक 5540 वोटों की गिनती पूरी हो चुकी है, और सभी चारों पदों पर लेफ्ट के उम्मीदवारों ने बढ़त बना रखी है।
जो महासचिव पद पहले एबीवीपी के पास बढ़त में था, वहां अब लेफ्ट उम्मीदवार ने बाजी पलट दी है। हालांकि दोनों के बीच का अंतर बहुत कम है, इसलिए अंतिम नतीजों तक स्थिति में बदलाव की संभावना बनी हुई है।

राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि JNU के परिणाम सिर्फ कैंपस राजनीति तक सीमित नहीं रहते, बल्कि यह देश की युवा सोच और वैचारिक झुकाव का संकेत भी देते हैं।


🔹JNU में वैचारिक संघर्ष का नया अध्याय

JNU हमेशा से वैचारिक बहसों का केंद्र रहा है — एक तरफ वामपंथी विचारधारा का किला, तो दूसरी ओर राष्ट्रवादी छात्र संगठनों की चुनौती।
इस बार भी मुख्य मुकाबला Left Unity (AISF, AISA, SFI, DSF का गठबंधन) और ABVP के बीच रहा।

चुनाव में इस बार भी वही सवाल केंद्र में रहे —

  • कैंपस में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का मुद्दा
  • फीस वृद्धि, छात्रवृत्ति और सामाजिक न्याय
  • राष्ट्रीय राजनीति में छात्र संगठनों की भूमिका

इन सब मुद्दों पर लेफ्ट ने परंपरागत मजबूत पकड़ बनाए रखी है, जबकि ABVP ने राष्ट्रीयवाद और विकास के मुद्दों पर छात्रों को आकर्षित करने की कोशिश की।


🔹EVM नहीं, बैलेट पेपर से हुआ मतदान – गिनती में लग रहा समय

JNU छात्रसंघ चुनाव देशभर के विश्वविद्यालयों से अलग है। यहां वोटिंग EVM से नहीं बल्कि पारंपरिक बैलेट पेपर से होती है, इसलिए गिनती का काम धीमी रफ्तार से चल रहा है।

चुनाव अधिकारियों के अनुसार —

“मतदान प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रही। हर चरण में छात्र प्रतिनिधियों की मौजूदगी रही और अब गिनती के अंतिम चरण में भी निगरानी बढ़ा दी गई है।”

गुरुवार सुबह तक के रुझानों में भी लेफ्ट यूनिटी की बढ़त बरकरार थी, जबकि कुछ सीटों पर ABVP ने अंतर कम करने की कोशिश की।


🔹JNU क्यों है इतना अहम?

JNU का छात्रसंघ चुनाव देश की वैचारिक राजनीति का आइना माना जाता है।
यहां की जीत-हार अक्सर इस बात का संकेत देती है कि देश के विश्वविद्यालय परिसरों में युवा वर्ग किस दिशा में सोच रहा है।

राजनीतिक विश्लेषक (Dr. रजनीश त्रिपाठी) का कहना है —

“JNU सिर्फ एक यूनिवर्सिटी नहीं, बल्कि एक राजनीतिक प्रयोगशाला है। यहां जो विचार जीतता है, वह देश की युवा राजनीति में धारा बन जाता है।”


🔹ABVP की उम्मीदें और लेफ्ट की रणनीति

ABVP ने इस बार JNU में मजबूत प्रचार अभियान चलाया था। सोशल मीडिया से लेकर छात्रावासों तक उन्होंने राष्ट्रवाद और विकास के एजेंडे पर बहसें आयोजित कीं।
दूसरी ओर, लेफ्ट यूनिटी ने कैंपस स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, और फीस से जुड़ी नीतियों को केंद्र में रखा।

विश्लेषकों का मानना है कि —

“JNU में चुनाव प्रचार सिर्फ नारों की जंग नहीं, बल्कि विचारों की टक्कर है। जो विचार युवा दिलों में जगह बना ले, वही जीतता है।”


🔹पिछले चुनावों का ट्रैक रिकॉर्ड

पिछले जेएनयू चुनाव (2024) में ABVP ने संयुक्त सचिव पद पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी, जिससे लगा था कि JNU में वामपंथी प्रभाव कम हो रहा है।
लेकिन 2025 के रुझान बताते हैं कि लेफ्ट यूनिटी ने इस बार वापसी की है और चारों सीटों पर कड़ी टक्कर के बावजूद मजबूत स्थिति में बनी हुई है।


🔹क्या इस बार बदलेगा समीकरण?

हालांकि मतगणना अभी जारी है, पर शुरुआती रुझान एक साफ संदेश देते हैं —
JNU के छात्र अभी भी विचारधारा, बहस और संवाद को राजनीति से ऊपर मानते हैं।
अगर अंतिम नतीजों में भी लेफ्ट यूनिटी की बढ़त कायम रहती है, तो यह JNU की वैचारिक पहचान की पुनः पुष्टि मानी जाएगी।


🔹निष्कर्ष (Conclusion):

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव सिर्फ एक विश्वविद्यालय की राजनीति नहीं, बल्कि भारत के युवा मन की दिशा का संकेत है।
जहां एक ओर ABVP अपनी राष्ट्रवादी छवि को मजबूत करने में लगी है, वहीं लेफ्ट यूनिटी लगातार बहस, तर्क और सामाजिक समानता के मुद्दों पर अपनी पकड़ बनाए हुए है।

अंतिम नतीजे भले कुछ भी हों, लेकिन यह साफ है कि —

“JNU में लोकतंत्र अब भी जीवित है, और वहां की बहसें पूरे देश के भविष्य की आवाज़ बन रही हैं।”

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