नेपाल में सत्ता संकट का अंत? आर्मी दबाव के बीच पीएम केपी शर्मा ओली ने थामा इस्तीफे का रास्ता
काठमांडू। नेपाल में पिछले कई दिनों से चल रहे बवाल और Gen-Z प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मंगलवार (9 सितंबर) को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सोशल मीडिया बैन से भड़की आग ने न केवल सड़कों को अशांत किया, बल्कि सत्ता की नींव भी हिला दी। खास बात यह है कि इस्तीफा देने से पहले ओली को खुद सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिगडेल ने सलाह दी थी कि “कुर्सी छोड़ दीजिए, तभी हालात सुधरेंगे।”
राष्ट्रपति ने इस्तीफा स्वीकार किया
देश की बिगड़ती स्थिति के बीच राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने ओली का इस्तीफा तुरंत स्वीकार कर लिया। सूत्रों के मुताबिक ओली फिलहाल सुरक्षा कारणों से नेपाली सेना के संरक्षण में हैं।
ओली के इस्तीफे का पत्र
अपने इस्तीफे में ओली ने लिखा:
“माननीय राष्ट्रपति जी, नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76 (2) के अनुसार प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद और वर्तमान असाधारण परिस्थितियों को देखते हुए, मैं संविधान के अनुच्छेद 77 (1)(ए) के तहत पद छोड़ रहा हूं ताकि समस्याओं के राजनीतिक समाधान की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।”
राष्ट्रपति भवन तक फैला जनाक्रोश
सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भड़के प्रदर्शनों ने सोमवार को विकराल रूप ले लिया। प्रदर्शनकारियों ने यहां तक कि राष्ट्रपति के घर को आग के हवाले कर दिया। राजधानी काठमांडू सहित कई शहरों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं।
आर्मी चीफ की दो-टूक सलाह
इस्तीफे से पहले आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिगडेल ने ओली से मुलाकात कर कहा था:
“आप सत्ता छोड़ दें, तभी हालात सुधर पाएंगे।”
सेना का यह रुख साफ संकेत था कि राजनीतिक संकट ने अब सुरक्षा ढांचे को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया था।
ओली की राजनीतिक यात्रा
- पहली बार प्रधानमंत्री (2015–2016): संविधान लागू होने के बाद पहली बार सत्ता संभाली लेकिन समर्थन खोने पर इस्तीफा देना पड़ा।
- दूसरी बार प्रधानमंत्री (2018–2021): तीन साल और 88 दिन पद पर रहे, फिर राजनीतिक दबाव में पद छोड़ा।
- तीसरी बार प्रधानमंत्री (2024–2025): जुलाई 2024 से अगस्त 2025 तक पद पर रहे और अब तीसरी बार भी इस्तीफा देना पड़ा।
तीन कार्यकालों में बार-बार इस्तीफों ने ओली की छवि को लगातार डगमगाया।
नेपाल की राजनीति का अगला कदम
ओली के हटने के बाद नेपाल में नया राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना है। सवाल यह है कि क्या विपक्ष और सेना मिलकर स्थिरता ला पाएंगे या यह संकट और गहराएगा।






