⚡ क्या नेताओं की गिरफ्तारी पर तुरंत इस्तीफा ज़रूरी? सरकार के नए विधेयक पर उठ रहे सवाल
नई दिल्ली, 20 अगस्त 2025 – केंद्र सरकार बुधवार को लोकसभा में एक ऐसा विधेयक पेश करने जा रही है, जिससे राजनीति में नई बहस छिड़ गई है। इस विधेयक के मुताबिक प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री और यहां तक कि केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी अगर किसी मामले में गिरफ्तार होते हैं, तो उन्हें तुरंत पद से हटना होगा।
लेकिन सवाल ये है कि क्या गिरफ्तारी मात्र ही अपराध साबित होने के बराबर है? और क्या इस तरह का कानून राजनीतिक बदले की कार्रवाई को बढ़ावा नहीं देगा?
⚖️ गिरफ्तारी ≠ दोष सिद्ध
कानून की बुनियादी सोच है कि “जब तक अपराध साबित न हो, व्यक्ति निर्दोष है”। विपक्ष का कहना है कि नए विधेयक से यह सिद्धांत कमज़ोर होगा।
- कई बार जांच एजेंसियां राजनीतिक दबाव में गिरफ्तारी करती हैं।
- ऐसे में बिना मुकदमे का फैसला आए, पद से हटाना लोकतंत्र और न्याय प्रक्रिया पर चोट मानी जा सकती है।
🔥 हाल की गिरफ्तारियों से जुड़ा विवाद
- अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया था। समर्थकों का तर्क था कि गिरफ्तारी ही अपराध का सबूत नहीं है।
- हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा दे दिया, लेकिन उनके समर्थकों ने इसे “राजनीतिक साजिश” बताया।
- मनीष सिसोदिया जैसे कई नेता अदालत में दोष सिद्ध होने से पहले ही जेल में रहे।
विपक्ष का आरोप है कि अगर यह विधेयक पास हो गया तो सरकारें विरोधी नेताओं को चुप कराने के लिए “गिरफ्तारी का हथियार” इस्तेमाल करेंगी।
🏛 सरकार का कदम और विपक्ष की चिंता
गृह मंत्री अमित शाह इस विधेयक को संसद में पेश करेंगे और इसे संयुक्त समिति के पास भेजा जाएगा।
लेकिन विपक्ष कह रहा है कि –
- ये कानून लोकतंत्र में “लेवल प्लेइंग फील्ड” खत्म कर देगा।
- राजनीति में गिरफ्तारी का डर नेताओं को सत्ता पक्ष के सामने झुकने पर मजबूर करेगा।
- यह संविधान के मूल सिद्धांत – “निर्दोष साबित होने तक निर्दोष” – का उल्लंघन है।
❓ बड़ा सवाल
क्या यह विधेयक राजनीति में पारदर्शिता लाएगा या फिर लोकतंत्र को कमजोर करेगा?






