SCO समिट 2025: मोदी-जिनपिंग की ऐतिहासिक बैठक से भारत-चीन रिश्तों का “नया दौर”, अमेरिका की रणनीति पर पड़ा असर
चीन के त्येनजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन 2025 के दौरान भारत और चीन के बीच रिश्तों में एक नया अध्याय जुड़ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की द्विपक्षीय बैठक ने न सिर्फ दोनों देशों के बीच हालिया तनाव को कम किया बल्कि रिश्तों को नए सिरे से पुनर्जीवित भी किया है। इस मुलाकात को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अहम मोड़ माना जा रहा है, जिसने एशिया में अमेरिका की रणनीति को चुनौती दे दी है।

बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने सीमा विवाद को सुलझाने और बॉर्डर पर स्थायी शांति कायम करने पर सहमति जताई। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि “सीमा पर सैनिकों की वापसी के बाद अब शांति और स्थिरता का वातावरण बना है।” उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने और भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानें बहाल करने की भी घोषणा की। यह कदम दोनों देशों के बीच संपर्क और विश्वास बढ़ाने की दिशा में ऐतिहासिक माना जा रहा है।
पीएम मोदी ने कहा, “हमारे सहयोग से दोनों देशों के 2.8 अरब लोगों के हित जुड़े हुए हैं और इससे पूरी मानवता को लाभ होगा। परस्पर विश्वास और सम्मान के आधार पर हम रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” इस दौरान उन्होंने चीन को SCO की सफल अध्यक्षता के लिए बधाई दी और राष्ट्रपति शी को 2026 में भारत में होने वाले BRICS शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया।
बैठक में आतंकवाद का मुद्दा भी प्रमुख रहा। मोदी ने आतंकवाद को पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए चीन से मिलकर इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने पर जोर दिया। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी इस विचार का समर्थन किया और BRICS में भारत की अध्यक्षता के लिए चीन के समर्थन का भरोसा दिया।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-चीन के बीच इस नए दौर की शुरुआत से अमेरिका को बड़ा झटका लगा है। पिछले एक दशक से अमेरिका ने भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ अपनी रणनीति का अहम स्तंभ बनाया था। QUAD जैसी पहल भी इसी सोच का हिस्सा रही है। मगर अब भारत और चीन की नजदीकियों ने एशिया में अमेरिकी प्रभाव को कमजोर कर दिया है, खासकर उसकी ताइवान नीति पर गंभीर असर पड़ सकता है।

दरअसल, अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर ने वैश्विक राजनीति को हिला दिया है। चीन पर भारी टैरिफ लगाने के बाद अमेरिका ने भारत पर भी कई स्तरों पर शुल्क लगाया। रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर भारत पर अतिरिक्त टैक्स लगाए जाने से तनाव और गहरा गया। लेकिन भारत ने अमेरिका के दबाव के आगे झुकने के बजाय चीन के साथ रिश्तों को मजबूती देने की रणनीति अपनाई। यही वजह है कि अब एशिया में भारत और चीन एक नए कूटनीतिक साझेदारी की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।
भारत-चीन संबंधों के इस “नए दौर” को एशिया में शक्ति संतुलन के लिहाज से गेम-चेंजर माना जा रहा है। दोनों देशों की बढ़ती नजदीकी न केवल आर्थिक सहयोग को नई गति देगी बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी विश्व राजनीति को नई दिशा दे सकती है।






