उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले बी. सुदर्शन रेड्डी का गुस्सा! मीडिया पर बरसे, कहा- “आप क्या पूछ रहे भई?”
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले विपक्षी INDIA गठबंधन के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी सुर्खियों में हैं। सोमवार को उन्होंने मीडिया से बातचीत में एक ओर जहां अपनी जीत को लेकर विश्वास जताया, वहीं दूसरी ओर कुछ सवालों पर नाराज भी हो गए।
“जीत का पूरा भरोसा है” – सुदर्शन रेड्डी
सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि उन्हें अपनी जीत पर पूरा भरोसा है। उनके अनुसार, उनका उद्देश्य केवल इतना है कि मतदाताओं की अंतरात्मा जागृत हो और वे सही निर्णय लें। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी भी क्रॉस-वोटिंग की बात नहीं की और न ही उनकी ऐसी कोई योजना है।
मीडिया पर क्यों भड़के रेड्डी?
जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि गृह मंत्री अमित शाह ने उनके बारे में कई बयान दिए हैं, तो सुदर्शन रेड्डी अचानक चिढ़ गए। उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा:
“आप क्या पूछ रहे हैं भई! कितने दिन के बाद ये सवाल पूछ रहे हैं। रोज-रोज वही बात बोलते रहूं क्या?”
उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया और राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया।
कौन हैं बी. सुदर्शन रेड्डी?
- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रह चुके हैं।
- गोवा के लोकायुक्त के तौर पर भी काम कर चुके हैं।
- संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा को हमेशा प्राथमिकता दी।
इसी पृष्ठभूमि को देखते हुए INDIA गठबंधन ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। विपक्ष इसे संविधानवादी दृष्टिकोण और सत्ताधारी विचारधारा के बीच सीधा टकराव बता रहा है।
जीत का आंकड़ा और समीकरण
लोकसभा में कुल 542 और राज्यसभा में 239 सांसद हैं। यानी कुल 781 वोट।
- जीत के लिए जरूरी वोट: 391।
- लेकिन बीजेडी, बीआरएस और शिरोमणि अकाली दल (कुल 12 सांसद) ने मतदान से दूरी बना ली है।
- अब वोटों की कुल संख्या रह गई है: 669।
- इस हिसाब से जीत के लिए जरूरी आंकड़ा घटकर 385 सांसदों का समर्थन रह गया है।
यह समीकरण दोनों उम्मीदवारों के लिए चुनौतीपूर्ण है, लेकिन विपक्ष का दावा है कि वह जमीनी स्तर पर समर्थन जुटा रहा है।
मुकाबला दिलचस्प क्यों?
यह चुनाव सिर्फ राजनीतिक दलों की ताकत का नहीं बल्कि संविधान और विचारधारा के टकराव का प्रतीक भी माना जा रहा है। एक ओर हैं पूर्व जज, जिनकी पहचान न्यायिक स्वतंत्रता और नैतिकता से जुड़ी है, वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष का मजबूत संगठनात्मक नेटवर्क।






