मखाना में प्रोटीन, मिनरल और कार्बोहाइड्रेट प्रचूर मात्रा में पाया जाता है
बेमेतरा - कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, बेमेतरा, ढोलिया में सुपर फ्रुड मखाना को प्रायोगिक तौर पर लगाया गया था। जिसमें अब बीज आने चालू हो गया है। कृषि महाविद्यालय में इसका बीज कृषि विज्ञान केन्द्र, धमतरी से मंगवा कर लगाया गया था। जिसकी बुवाई पिछले सत्र में ठंड के मौसम में की गयी थी जिसके उत्पादन में कृषि महाविद्यालय सफल रहें। कृषि विज्ञान केन्द्र, धमतरी में इस सुपर फ्रुड का उत्पादन वर्ष में दो बार किया जा रहा है।
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मखाने में सोडियम, कैलोरी और फैट की मात्रा कम पाई जाती है एवं फाइबर की अधिक मात्रा होने के कारण इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं। इससे पेट और दिल की बिमारियां कम होने के साथ यह शरीर में इंसुलिन की मात्रा को भी समान स्तर पर रखता है। जिससे शुगर, कोलेस्ट्राल कंट्रोल होने के साथ वजन भी नियंत्रित रहता है।
भारत में मखाना की खेती की शुरूवात बिहार के दरभंगा जिले से हुई। सालभर पानी जमाव वाली जमीन मखाना की खेती के लिए उपयुक्त साबित हो रहे हैं। मखाना उपजाने के लिए इच्छुक किसान खेती से बेकार पड़ी जमीन अथवा अपने सामान्य खेत का इस्तेमाल कर सकते है। शर्त यह है कि मखाना की खेती के अवधि के दौरान उक्त खेत में 6 से 9 इंच पानी जमा रहे।
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मखाना की खेती का उत्पादन प्रति एकड़ 10 से 12 क्विंटल होता है। इसमें प्रति एकड़ 20 से 25 हजार रूपये की लागत आती है। जबकि 60 से 80 हजार रूपये की आय होती है। इसकी खेती के लिए कम से कम 4 फिट पानी की जरूरत होती है। एवं प्रति एकड़ खाद की खपत 15 से 40 कि. ग्रा. होती है। इसकी खेती दिसंबर से जुलाई तक ही होती है। इसके बाद किसान दूसरी फसल लगा सकते हैं।
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मखाना में प्रोटीन, मिनरल और कार्बोहाइड्रेट प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। अधिकतम प्रोटीन, फाइबर एवं कलेस्ट्राल की कम मात्रा होने के कारण इसकी गिनती सुपर फ्रुड में की जाती है। इस कारण यह फसल देश के अलावा विदेशों में उपयोग किया जाता है अतः यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने का अच्छा साधन है। मखाना की खेती में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बार उत्पादन के बाद वहाँ दोबारा बीज डालने की जरूरत नहीं होती है। अतः अनुपयुक्त जमीन पर किसान मखाना उत्पादन करके अतिरिक्त लाभ ले सकते हैं। इच्छुक किसान कृषि महाविद्यालय में संपर्क कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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