बचने की आख़िरी उम्मीद लाइफ़ बोट भी पंचर इस गरजता समुद्र में
16 मई की रात को विशाल केदार अपने जीवन में कभी भुला नहीं पाएँगे. ये वो रात थी जिसमें उन्होंने मौत से आँखें मिलाईं, उससे डरे भी पर आख़िरकार उसे चकमा देकर बच निकले.
केदार बार्ज पी-305 पर वेल्डिंग सहायक का काम करते थे. बार्ज या बजरा नहरों और नदियों में माल ढोने के लिए इस्तेमाल होने वाली एक लंबी सपाट तल वाली नाव को कहा जाता है. कुछ बार्ज इंजन वाले होते हैं, दूसरों को किसी दूसरी बोट से खींचकर चलाया जाता है.
बार्ज पी-305 मुंबई के तट पर तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के लिए काम कर रहा था. इस बार्ज को हीरा तेल क्षेत्रों में तैनात किया गया था. ये तेल क्षेत्र अरब सागर में ओएनजीसी के सबसे तेल के भंडारों में से एक है.
16 मई की आधी रात के तुरंत बाद चक्रवात तौक्ते के तेज़ थपेड़ों के कारण यह बार्ज अपने लंगर से छूट गया और 17 मई की शाम मुंबई से लगभग 60 किलोमीटर दूर अरब सागर में डूब गया
इस बार्ज पर कुल 261 लोग सवार थे. लापता कर्मियों का पता लगाने के लिए 17 मई से खोज और बचाव कार्य अब भी जारी है. आख़िरी समाचार मिलने तक भारतीय नौसेना ने इस बार्ज से 186 लोगों को बचा लिया था और 15 लापता लोगों को ढूंढने की कोशिश जारी थी. इस बार्ज पर काम कर रहे 60 लोगों की मौत हो चुकी है.
केदार के साथ बच निकलने वालों में उनके दोस्त अभिषेक अवध भी हैं. केदार और अवध की उम्र 20 साल है और वे नासिक ज़िले के एक गाँव के रहने वाले हैं.
दोनों दोस्त मार्च के महीने में इस बार्ज पर वेल्डिंग असिस्टेंट के तौर पर काम करने आए थे. पर शायद उन्होंने कभी न सोचा होगा कि इस 20,000 रुपये महीने की नौकरी में उन्हें इतने बड़े जोखिम का सामना करना पड़ सकता है.
केदार और अवध ख़ुश हैं कि उनकी जान बच गई लेकिन उस रात जो उनके साथ हुआ उसकी भयावह यादें उनके ज़हन में अब भी ताज़ा हैं.
कहते हैं कि 14 तारीख़ को उनके बार्ज के कप्तान को बताया गया कि एक चक्रवात समुद्रतट से टकराएगा और आपको सभी क्रू मेंबर्स के साथ बार्ज पर वापस मुंबई लौट जाना चाहिए और किसी सुरक्षित स्थान पर लंगर डालना चाहिए.
, "लेकिन, बार्ज के कप्तान और कंपनी प्रभारी ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने सोचा कि अगर लहरों की ऊंचाई सात या आठ मीटर है तो बार्ज को कोई ख़तरा नहीं होगा, इसलिए वे बार्ज को उस प्लेटफॉर्म से 200 मीटर दूर ले गए जहाँ हम काम कर रहे थे."
अवध कहते हैं कि पानी बहुत तेज़ी से बहने लगा और तूफ़ानी बारिश की मार इतनी ज़ोरदार थी कि बार्ज अपना संतुलन खोने लगा और पानी के बहाव के साथ बहने लगा.
तौक्ते तूफ़ान में समंदर की लहरों के बीच फंसे रहे दो लोगों की आपबीती
कहते हैं कि उस रात इतनी तेज़ हवा चल रही थी कि बार्ज बेकाबू हो चुका था.
"इससे लंगरों पर दबाव बन गया और वे अत्यधिक दबाव में आ गए. रात के 12 बजते ही लंगर टूटने लगे और एक-एक करके सभी लंगर 3.30 बजे तक टूट गए. साथ ही ओएनजीसी के प्लेटफॉर्म पर बार्ज टकरा गया और उसमें एक छेद हो गया जिससे एक तरफ़ से पानी अंदर जाने लगा."
"कुछ देर बाद बार्ज का पिछला हिस्सा डूब गया और इंजन रूम में पानी भर गया और रेडियो और लोकेशन ऑफ़िस दोनों पूरी तरह जल गए."
रेडियो अधिकारी ने तुरंत मुंबई कार्यालय से संपर्क करने की कोशिश की और मदद माँगी.
उनमें से 20 लोग उसी समय समुद्र में कूद गए और उनमें से 17'8 लोग लहरों के साथ डूब गए. वो कहते हैं, "उन्होंने हम पर लाइफ़ राफ्ट (जीवनरक्षक बेड़ा) गिराया लेकिन जब हम उनके ऊपर से कूदे तो वे पंचर हो गए. ऐसे में हमें बचना मुश्किल हो रहा था."
वक़्त बीतता जा रहा था. कुछ घंटों में बचाव दल पहुँच तो गया लेकिन वो इन लोगों के पास नहीं जा सका.
कहते हैं, "उन्होंने कहा कि अगर उनकी नावें हमारे पास आती हैं और वे बार्ज से टकरा सकती हैं तो इससे दोनों तरफ नुक़सान होगा. उन्होंने हमें मौसम के थोड़ा साफ़ होने तक इंतज़ार करने का सुझाव दिया ताकि वे ठीक से देख सकें और हमें बचा सके. हमारे पास इंतज़ार करने के लिए ज़्यादा समय नहीं था. हमने चार बजे तक इंतज़ार किया. फिर सबकी उम्मीद टूट गई और हमें लगा कि हम सब मर जाएँगे."
कहते हैं कि बार्ज की बिजली चली गई थी और इसलिए रेस्क्यू टीम को उन्हें ढूंढना मुश्किल हो गया था. उनके अनुसार जहाँ बार्ज ने लंगर डाला हुआ था, वो वहां से 90 किलोमीटर दूर तक भटक गया था.
"समय बीतता जा रहा था. सुबह के चार बज रहे थे. हम बस रेस्क्यू बोट का इंतज़ार करते रहे. जैसे ही पानी पीछे की ओर से अंदर गया, बार्ज लगातार डूबने लगा. बार्ज का केवल एक किनारा ही पानी के ऊपर था. कर्मी दल के सभी सदस्य उस तरफ जमा हो गए. फिर क़रीब पाँच बजे पूरा बार्ज डूबने की कगार पर था. ठीक वैसे ही जैसे टाइटैनिक के साथ हुआ था."
कहते हैं कि "जैसे ही बार्ज डूबने लगा, सबने एक-दूसे के हाथ थाम लिए और कूदने का मन बना लिया ताकि बचाव दल हमें एक साथ एक स्थान पर हमें ढूंढ सकें. फिर हम तीन या चार के समूह में समुद्र में कूद गए. हमने 10'5 समूह बनाए और एक दूसरे को थामे रखा. लगभग तीन-चार घंटे तक हम पानी के साथ बहते रहे. पानी नाक और मुंह के अंदर जा रहा था. हमने बहुत कुछ सहा."
कुछ देर बाद पानी में कूद चुके लोगों को भारतीय नौसेना का एक और जहाज़ अपने पास आता दिखा. उसे देख उनकी उम्मीदें तो जागीं कि शायद अब उन्हें बचा लिया जाएगा. लेकिन तेज़ बहाव वाली पानी की लहरें उस उम्मीद पर भारी पड़ रही थीं. अवध कहते हैं कि "उस क्षण मैंने मौत को चखा."
कहते हैं कि समुद्र में छलांग लगाने के बाद वे सभी लोग चार घंटे तक पानी में रहे. उनके अनुसार जब-जब वे भारतीय नौसेना के जहाज़ की ओर बढ़ने की कोशिश करते तो कभी-कभी जहाज़ को छू भी लेते थे पर पानी का बहाव इतना तेज़ था कि उन्हें 100-200 मीटर दूर फेंक देता था.
"हम कोशिश करते रहे लेकिन आख़िरकार हमने उम्मीद खो दी और इस बात को स्वीकार कर लिया कि हम वहीं मरेंगे. हममें से कुछ लोगों ने लाइफ़ जैकेट उतारकर मौत को गले लगा लिया. यहां तक कि मैंने भी ऐसा करने के बारे में सोचा."
इस दौरान नौसेना का बचाव दल भी कड़ी मेहनत कर रहा था. उन्होंने ऊपर से रस्सियाँ और लाइफ़ राफ्ट फेंके. अवध कहते हैं कि जब उनका दल नौसेना की नाव के पास पहुंचा तो उनमें से कोई उस नाव के नीचे चला गया, कोई नाव के पंखे में फंस गया और कोई नाव से टकरा गया.
"मैंने तैरने की कोशिश की और फिर रस्सी पकड़कर ऊपर चढ़ गया. मैं लगभग बेहोश हो गया था. धीरे-धीरे वे सभी को बचा रहे थे. हम यह भी नहीं समझ पाए कि उस वक़्त दिन था या रात."
अवध कहते हैं कि हर इंसान जीने की कामना करता है और वो उम्मीद नहीं खोना चाहता लेकिन जब वो समुद्र में गिरे तो लगा कि मरना तय है.
वो कहते हैं, "लेकिन, हमारे सहयोगियों ने एक-दूसरे को हौसला दिया और कहा कि हम उम्मीद न खोएं. उन्होंने हमसे कहा कि हम बच जाएँगे. यह वैसा ही है, जैसा हम फ़िल्मों में देखते हैं."
केदार का कहना है कि पहले चार घंटों में उन्हें उम्मीद थी कि वो बच जाएंगे, लेकिन जैसे-जैसे पानी का बहाव और तेज़ होने लगा उनकी उम्मीद टूटने लगी और आने वाली मौत साफ़ दिखने लगी.
वो कहते हैं, "लेकिन जब कुछ देर बाद हमें बचा लिया गया तो यह जानकर राहत मिली कि हम ज़िंदा हैं."
मौसम विभाग ने 11 मई की शाम को अरब सागर में तूफ़ान आने की चेतावनी दी थी और सभी नावों को 15 मई तक तट पर पहुंचने का निर्देश दिया था. भारतीय कोस्ट गार्ड के अनुसार 4,000 से अधिक मछली पकड़ने वाली नौकाएं बंदरगाह पर लौट आई थीं. कोस्ट गार्ड के अधिकारियों ने ओएनजीसी को बंदरगाह में सभी जहाज़ों को सुरक्षित ले आने की चेतावनी दी थी.
लेकिन इन चेतावनियों के बाद भी बार्ज पी-305 अभी भी समुद्र में ही था और बॉम्बे हाई ऑयल फ़ील्ड के पास एक तेल रिग के प्लेटफ़ॉर्म से बंधा हुआ था.
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