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यूएन में अहम प्रस्ताव पास इसराइल के ख़िलाफ़
  • Written by - News Valley24 Desk
  • Last Updated: 28 मई 2021,  11:24 AM IST

भारत, रूस, चीन रहे किसके साथ...

14 देश मतदान से बाहर रहे. मतदान न करने वालों में भारत भी शामिल है. गुरुवार को यूएनएचआरसी का फ़लस्तीनियों के अधिकारों को लेकर ख़ास सत्र बुलाया गया था.





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इस सत्र में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के सदस्य देश एकजुट रहे. ओआईसी फ़लस्तीनियों के पक्ष में खुलकर खड़ा था.





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युद्धविराम से पहले 11 दिनों तक चले हिंसक संघर्ष में ग़ज़ा में कम से कम 248 लोगों की मौत हुई है, जिनमें 66 बच्चे और 39 महिलाएं हैं. इसराइल में भी 12 लोगों की मौत हुई है. इसराइल का कहना है कि उसने हमास के रॉकेट के जवाब में हमले किए थे.





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यूएनएचआरसी के इस प्रस्ताव पर इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. इसराइली पीएम ने यूएनएचआरसी के प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ''यूएनएचआरसी में लिया गया शर्मनाक फ़ैसला एक और उदाहरण है कि संयुक्त राष्ट्र की यह संस्था कैसे इसराइल विरोधी मंशा से ग्रस्त है. एक बार फिर से ऑटोमैटिक बहुमत वाली इस काउंसिल ने जनसंहार करने वाले आतंकवादी संगठन, जिसने जानबूझकर इसराइली नागरिकों को निशाना बनाया और ग़ज़ा के लोगों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया, उसके अपराधों पर पर्दा डाल दिया है.''





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कड़ी प्रतिक्रिया इसराइली पीएम की

इसराइल प्रधानमंत्री ने कहा, ''हम एक लोकतांत्रिक देश हैं और हमने हज़ारों बेलगाम रॉकेट हमले से अपने लोगों को बचाने के लिए जवाबी कार्रवाई की थी. इसे लेकर हमें 'दोषी पक्ष' क़रार दिया है. यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का मज़ाक है और दुनिया भर में आतंकवादियों के लिए प्रोत्साहन देने वाला साबित होगा.''





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संयुक्त राष्ट्र के इस मानवाधिकार काउंसिल ने ग़ज़ा, इसराइल और वेस्ट बैंक में अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए जांच आयोग बनाने का फ़ैसला किया है. इसे सबसे प्रभावी क़दम माना जा रहा है. इसराइल के ख़िलाफ़ पहली बार बहुमत से जाँच आयोग गठित करने का फ़ैसला हुआ है.





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यह जाँच आयोग 11 दिनों तक चले हिंसक संघर्ष की जड़ की भी जाँच करेगा. यूएनएचआरसी में पास किए गए प्रस्ताव के अनुसार अस्थिरता, हिंसक संघर्ष के बचाव, भेदभाव और दमन की भी जाँच होगी. इसमें कुछ देशों से हथियारों की आपूर्ति को लेकर भी टिप्पणी की गई है और कहा गया है कि यह मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन है. इस टिप्पणी का निशाना उन देशों पर है जो इसराइल को हथियार देते हैं.





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चीन, रूस और पाकिस्तान उन देशों में से हैं, जिन्होंने इसराइल के ख़िलाफ़ मतदान किए. कई पश्चिमी और अफ़्रीकी देशों ने इसराइल के समर्थन में मतदान किए हैं. जेनेवा में यूएन के स्थायी ब्रिटिश राजदूत सिमोन मैनली ने कहा कि इससे बहुत कुछ हासिल नहीं होगा.





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ऑस्ट्रिया के राजदूत ने कहा कि यूएनएचआरसी का प्रस्ताव खेदजनक है. वहीं रूसी प्रतिनिधि ओल्गा वोरोनोत्सोवा ने कहा है कि उनके मुल्क ने इस प्रस्ताव का इसलिए समर्थन किया क्योंकि इससे हिंसक संघर्ष के कारण सार्वजनिक हो सकेंगे.





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इसराइल के दोस्त देशों ने यूएनएचआरसी की इस बैठक का विरोध किया था. अमेरिका यूएनएचआरसी में 47 सदस्य देशों में शामिल नहीं है. इसलिए वो वोटिंग में हिस्सा नहीं ले सका. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में अमेरिका को यूएनएचआरसी से बाहर कर लिया था.





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मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र की उच्चायुक्त मीचेल बैचलेट ने सत्र की शुरुआत में कहा कि इसराइल को हालिया हिंसक संघर्ष की स्वतंत्र जाँच की अनुमति देनी चाहिए. पिछले हफ़्ते संघर्षविराम से पहले इसराइल और हमास के बीच की लड़ाई में सैकड़ों लोगों की जान गई थी.





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बचलेट ने कहा, ''ऐसे हमले युद्ध अपराध जैसे होते हैं. इसका असर आम लोगों को पर बहुत गहरा पड़ता है. इसराइल अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करे और ऐसा अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत होना चाहिए.''





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बचलेट ने कहा कि हमास के बेलगाम रॉकेट हमले भी युद्ध के नियमों का खुला उल्लंघन है. बचलेट ने कहा कि हमास ने इसराइल में रिहाइशी इलाक़ों पर रॉकेट से हमला किया था.





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