आज मैंने खुशी को खो दिया
मैंने अपनी किडनी उसे ट्रांसप्लांट की ताकि उसका जीवन बचा पाऊं, लेकिन भगवान ऐसा नहीं चाहता था। उसे नहीं बचा पाने का दुख है। मेरी खुशी तकलीफ और दर्द सहन करती-रहती थी लेकिन रात में मुझे परेशान इसलिए नहीं करती थी कि पापा अभी ड्यूटी से आए हैं। थके होंगे, उन्हें अपना दर्द बताऊंगी तो वो सो नहीं पाएंगे। रातभर असहनीय दर्द को सहन कर लेती थी लेकिन मुझे जगाती नहीं थी। वर्ष 2016 फरवरी महीने की बात है, जब मेरी बेटी की उम्र 13 वर्ष की थी। तब उसे अचानक सांस लेने में तकलीफ हुई। पैरों में सूजन, चक्कर आना, थकावट की पीड़ा हुई तो मैं उसे लेकर अपोलो हॉस्पिटल गया। यहां डॉक्टरों ने कई तरह की जांच कराई इसके बाद कहा कि बच्ची की किडनी में समस्या है। जितनी जल्दी किडनी बदल जाएगी, उतना अच्छा होगा।
अपोलो में चार दिन इलाज चला, वेंटिलेटर पर बच्ची रही फिर आराम मिला तो हम वापस घर आ गए। इसके बाद मैं बच्ची को लेकर सीएमसी वेल्लूर गया। वहां के डॉक्टरों को भी दिखाया। उन्होंने भी यही समस्या बताई। उन्होंने कहा कि बच्ची की किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा। मैं रेलवे कर्मचारी हूं इसलिए फिर मैं रेलवे हॉस्पिटल गया तो वहां के डॉक्टरों ने जसलोक हॉस्पिटल मुंबई में इलाज कराने के लिए लिखकर दिया। नवंबर 2016 में हम मुंबई के जसलोक गए। वहां सभी जांचें हुई और किडनी देने की बात कही। मैंने कहा मैं फादर हूं तो मेरी किडनी चेक कर लीजिए मैच करती है तो मैं दे दूंगा। भगवान की कृपा से मेरी किडनी मैच कर गई। लिखा पढ़ी के बाद 26 दिसंबर 2016 को मेरी किडनी बच्ची को ट्रांसप्लांट की गई। मैं एक हफ्ते तक भर्ती रहा और बच्ची 15 दिन भर्ती रही। इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया।
खुशी भी स्वस्थ हो गई और वापस हम घर लौट आए। दो साल तक सबकुछ ठीक रहा लेकिन वर्ष 2019 में फिर से बच्ची को प्रॉब्लम शुरू हुई। पैर फूलना, लंग्स में पानी भरना, सांस लेने में तकलीफ होना शुरू हो गई। हमने जसलोक के डॉक्टरों से संपर्क किया और अपोलो में इलाज शुरू कर दिया। तब से अपोलो में डायलिसिस और इलाज की दम पर खुशी की सांसें चल रही थी। डॉक्टरों ने उसे अभी तक दवाई, गोली की दम पर जिंदा रखा। 10 सितंबर से खुशी अपोलो में वेंटिलेटर पर थी और 26 सितंबर यानी आज डॉटर्स-डे के दिन सुबह पौने चार बजे वो मुझे छोड़कर चली गई। मेरी बेटी का शव अभी घर पर है। सोमवार को भारतीय नगर मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
रेलवे में गार्ड हैं संजय
व्यापार विहार में रहने वाले 45 साल के संजय सिंह रेलवे में गार्ड के पद पर पदस्थ हैं। उनकी पत्नी का नाम चंदा सिंह है। खुशी के जाने के बाद अब छोटी बेटी आस्था सिंह ही उनके लिए सबकुछ है। संजय ने बताया कि आस्था की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है। लेकिन दुनिया में बेटियों से प्यारा और कुछ नहीं है। संजय ने बताया कि खुशी के इलाज में उन्हें रेलवे से पूरा सहयोग मिला। अगर वे रेलवे में नहीं होते तो शायद इतना इलाज भी नहीं करवा पाते।
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