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हसदेव में खनन पर घिरी सरकार
  • Written by - News Valley24 Desk
  • Last Updated: 23 नवम्बर 2021,  01:01 PM IST

WII की चेतावनी- नई खदाने खुलीं तो भयानक होंगे परिणाम; सिंहदेव बोले- नो-गो एरिया ही बचाव का एकमात्र तरीका

मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर लिखा, भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट नो-गो के रुख की पुष्टि करती है। यह हसदेव क्षेत्र को बचाने का एकमात्र तरीका है। मेरी इच्छा है कि इन सुझावों को नीतिगत निर्णयों के रूप में लागू किया जाए जैसा कि यूपीए सरकार के समय जयराम रमेश जी द्वारा किया गया था।





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हाथी-मानव द्वंद बढ़ेगा
हसदेव अरण्य कोलफील्ड की जैव विविधता का और वहां के जीवों पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करने के बाद भारतीय वन्यजीव संस्थान ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट सौंपी है। 277 पेज की रिपोर्ट में कहा गया कि देश के एक प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में हैं। वहीं हाथियों और इंसानों के संघर्ष में 15% जनहानि केवल छत्तीसगढ़ में होती है। किसी एक स्थान पर कोयला खदान चालू की जाती है तो हाथी वहां से हटने को मजबूर हो जाते हैं। वे दूसरे स्थान पर पहुंचने लगते हैं, जिससे नए स्थान पर हाथी-मानव द्वंद बढ़ता है। ऐसे में हाथियों के अखंड आवास, हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड क्षेत्र में नई माइन खोलने से दूसरे क्षेत्रों में मानव-हाथी द्वंद इतना बढ़ेगा कि राज्य को संभालना मुश्किल हो जाएगा।





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3 जिलों का क्षेत्र
हसदेव अरण्य कोलफील्ड, छत्तीसगढ़ के सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिले में फैला बहुमूल्य जैव विविधता वाला वन क्षेत्र है। इसमें परसा, परसा ईस्ट केते बासन, तारा सेंट्रल और केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक आते हैं। वर्तमान में सिर्फ परसा ईस्ट केते बासन में खनन चल रहा है। स्थानीय आदिवासी ग्रामीण इस जंगल को बचाने के लिए पिछले महीने 300 किलोमीटर पैदल चलकर राजधानी पहुंचे थे। उन्होंने राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मिलकर वहां खनन रुकवाने की मांग की थी। टीएस सिंहदेव ने उस समय भी उनका समर्थन किया।





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NGT की वजह से सरकार को कराना पड़ा था अध्ययन
केंद्रीय वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2011 में 1 हजार 898 हेक्टेयर में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के लिए स्टेज वन की अनुमति प्रदान की। उसी समय भारत सरकार की फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने इस आवंटन को निरस्त करने की अनुशंसा की थी। बाद में 2012 में स्टेज-2 का फाइनल क्लीयरेंस भी जारी कर दिया गया। 2013 में माइनिंग शुरू भी कर दिया गया।





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छत्तीसगढ़ के सुदीप श्रीवास्तव ने इसके खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) प्रिंसिपल बेंच में अपील दायर की। NGT ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान से अध्ययन कराने की सलाह दी। वर्ष 2017 में केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने केते एक्सटेंशन का अप्रूवल इस शर्त के साथ जारी किया कि दोनों संस्थाओं से हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड की जैव विविधता पर रिपोर्ट ली जाएगी।





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WII ने अध्ययन में कई तथ्य उजागर किए





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  • भारतीय वन्य जीव संस्थान ने बताया कि वर्तमान में परसा ईस्ट केते बासन में माइनिंग चालू है। माइनिंग की अनुमति सिर्फ इसी के लिए रहनी चाहिए। अद्वितीय, अनमोल और समृद्ध जैव विविधता और सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों को देखते हुए हसदेव अरण्य कोलफील्ड का और उसके चारों तरफ के क्षेत्र को नो-गो एरिया घोषित किया जाना चाहिए।

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