भजिया बेचकर घर चला रही महिला के पोते के दिल में छेद, इलाज के लिए मकान बेचने मजबूर
लेकिन जीवन की परीक्षा इतनी कठिन होगी इसकी कल्पना ही नहीं कर पाए थे। आज कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ रहा है। सरकार व जनप्रतिनिधि एक तरफ तमाम स्वास्थ्य सुविधाओं का गुणगान करते हैं लेकिन अब तक सरकारी मदद नहीं मिल पाई है। मैं ठेले में भजिया बेच कर घर चलाती हूं। तीन लाख रुपए खर्च करना मेरे लिए संभव नहीं है इसलिए घर ही बेचना पड़ेगा। अब घर को चलाने वाली मैं अकेली पड़ गई हूं। पति, बेटा, पोता सभी बीमार हैं। ऐसे में कहीं से कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही है।
हर माह 20 हजार की दवा, अब तक डेढ़ लाख से अधिक खर्च
मासूम दैविक की दादी पीला बाई बताती हैं कि दैविक के एक माह की दवा का खर्च 20 हजार रुपए से भी अधिक है। इलाज में अब तक डेढ़ लाख रुपए खर्च हो चुका है। डॉक्टर कहते हैं कि रायपुर के अस्पताल में ऑपरेशन फ्री में हो सकता है। लेकिन ऑपरेशन के बाद दवाइयों में ही 3 लाख रुपए खर्च आ जाएंगे।
मां ने कहा- मदद के लिए घूम रही हूं, कहीं से कोई मदद नहीं मिली
65 दिन का बच्चा दैविक की माता प्रेमलता बताती है कि मदद के लिए कई दफ्तरों के चक्कर कांटे, कई नेताओं के पास गए। जनप्रतिनिधियों ने दिलासा दिलाया। लेकिन मदद कहीं से नहीं मिला। जिन लोगों से मदद की उम्मीद की थी वह भी साथ छोड़ गए। ऐसा कोई कार्ड भी नहीं जिससे सरकारी योजना का लाभ मिले।
खेत बेचकर बेटे का कराया था ऑपरेशन फिर पति लकवाग्रस्त
पिला बाई बताती है कि हमारे ऊपर दुःखों का पहाड़ पिछले 4 साल से टूट रहा है। बेटा डामन लाल की तबीयत दो साल पहले बहुत ज्यादा खराब थी। पेट का ऑपरेशन करना पड़ा था। इलाज के लिए खेत बेचना पड़ा। फिर पति गौतम राम लकवा (पैरालिसिस) ग्रस्त हो गए। उनका भी इलाज चल रहा है। बच्चे के आने से एक उम्मीद जगी।
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