बोले- कर सकते हैं खुद की सुरक्षा, नहीं चाहिए कैंप और पुल, नाव से ही करेंगे नदी पार
दरअसल, कांकेर जिला मुख्यालय से महज 150 किमी की दूर बेचाघाट के कोटरी नदी में करोड़ो रूपए की लागत से पुल का निर्माण किया जाना है। यदि यहां पुल बनता है तो इसका सीधा फायदा नारायणपुर और कांकेर जिले के 150 से ज्यादा गांवों की एक बड़ी आबादी को मिलेगा। इस नक्सलगढ़ में पुल बनाने से पहले सुराक्षाबलों का कैंप भी स्थापित किया जाना है। जिसकी खबर सुनते ही सैकड़ों ग्रामीणों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
खनिज संपदा को लूटने की बना रहे योजना - ग्रामीण
आंदोलन में बैठे ग्रामीणों का कहना है कि, सरकार कोटरी नदी में पुल बना कर हमें फायदा नहीं पहुंचना चाहती, बल्कि नदी पार स्थित खनिज संपदा को लूटना चाहती है। यहां के पहाड़ों को नुकसान पहुंचाने के लिए खदान स्थापित किया जाएगा। हमें परेशान किया जाएगा। अभी नदी पर पुल नहीं है इस लिए कोई पहुंच नहीं पाता। लेकिन पुल बनने के बाद यहां बाहरी लोगों की आवाजाही शुरू जो जाएगी। यह सरकार की सोची समझी रणनीति है। खनिज संपदा को लूटने के लिए योजना बना रहे हैं।
पर्यटन स्थल का भी विरोध
ग्रामीणों का कहना है कि हम प्रकृति के पुजारी हैं। यहां के जल-जंगल-जमीन की हम पूजा करते हैं और यह हमारा है। इलाके को पर्यटन के रूप में डेवलप करने की भी प्लानिंग की जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि पर्यटन स्थल के रूप में डेवलप करने के बाद इलाके में बाहरी लोगों की घुसपैठ शुरू हो जाएगी। यहां की प्राकृतिक सौंदर्यता को बर्बाद कर दिया जाएगा। जल-जंगल-जमीन को नुकसान पहुंचाया जाएगा।
स्कूल और अस्पताल की उठी मांग
आंदोलन में बैठे ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार हमारे लिए कुछ भला करना चाहती है तो हमें पुल और कैंप नहीं बल्कि बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल और मरीजों के लिए अस्पताल की व्यवस्था करवा दें। गांव में इन दोनों की बहुत आवश्यकता है। ताकि इलाके के बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकें और मरीजों को इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खानी न पड़े।
तंबू गाड़ कर बैठे हैं ग्रामीण
कोटरी नदी के किनारे ग्रामीणों का आंदोलन जारी। ग्रामीण अपना घर छोड़ महीने भर से नदी किनारे तंबू गाड़ कर बैठे हुए हैं। ग्रामीण अपने साथ राशन सामान भी लेकर आएं हैं। अमूमन देखा जाता है कि जब भी ग्रामीण अपने साथ राशन लेकर पहुंचते हैं तो वे लंबे समय तक आंदोलन में बैठे रहते हैं। पूरे दिसंबर माह में यहां ग्रामीण कड़ाके की ठंड में भी आंदोलन तंबू गाड़ कर आंदोलन में बैठे रहे।
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