पाकिस्तानियों की दहशत से 33 साल पहले सिंधी परिवार बिलासपुर आया, आज तक भारतीय नहीं बने क्योंकि पाक ने रोकी जांच रिपोर्ट
इनकी स्थिति है कि यहां रहने के आठ साल के बाद इस परिवार के माता-पिता को भारत की नागरिकता तो मिल गई, लेकिन दो बहनें आज भी अपना वीजा बढ़ाकर यहां रह रही हैं। हर दो साल में उन्हें इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। और उन्हें हर उस नियम का सामना करना पड़ रहा जो भारत में पाकिस्तानियों के लिए बनाया गया है। सिर्फ इसलिए क्योंकि इनकी भारत नागरिकता सर्टिफिकेट का मामला पाकिस्तान से जांच रिपोर्ट नहीं आने के कारण अटका हुआ है।
पाकिस्तान में लालकेना जिले के बाडरे से लौटीं इस परिवार की बड़ी बेटी संगीता 45 साल की हो चुकी है। पिता सेवकराम (70) का निधन हो गया है। 65 वर्षीय मां सखी बाई उसलापुर में रहती हैं। जबकि उनकी छोटी बहन 41 साल की अनिता अहमदाबाद में है।
परिवार के इस बिखराव का कारण दोनों बहनों की अलग-अलग जगहों पर हुई शादी है। संगीता की शादी बिलासपुर लौटने के बाद कोटा के करगीरोड में हुई, जबकि अनिता की शादी बिलासपुर में। संगीता के पति मेडिकल कॉम्लेक्स में काम करते हैं। अनिता के पति गुजर चुके हैं जिनके कपड़े का कारोबार वे संभाल रही हैं।
इन्होंने भारतीय नागरिकता सर्टिफिकेट के लिए गुजरे दिनों में हर उस दफ्तर का चौखट नापा है, जहां से इसकी औपचारिता का संबंध रहा। लेकिन हर बार उन्हें इस सर्टिफिकेट को जारी नहंी करने का एक ही कारण बताया जा रहा-उनके संबंध में पाकिस्तान से जांच रिपोर्ट नहीं मिली है।
संगीता कहती हैं- 33 साल बाद हमें पाकिस्तान में कौन पहचानेगा? जो इस बात की गवाही देगा कि हम वहां रहे हैं। इसलिए ही भटकाव है। उन्हें आज तक ना तो भारतवासी होने का गौरव हासिल हुआ और ना ही किसी तरह की कोई सरकारी योजना का लाभ मिल पा रहा है। उनके पति और बच्चे तो भारतवासी माने जा रहे हैं, लेकिन सिर्फ दो बहनें यहां वीजा बढ़ाकर दिन गुजार रही हैं।
दिल्ली से हुई आवेदन की शुरुआत, बिलासपुर के कलेक्टोरेट तक जारी
अनिता और संगीता ने भारत वापसी के बाद दिल्ली में भारत की नागरिकता पाने आवेदन किया। पाकिस्तान के हाई कमीशन से मिली जिस रसीद के आधार पर उनके माता-पिता को यहां की नागरिकता मिली थी। उसे अब वहां का गृह मंत्रालय मानने से इनकार कर रहा है। जबकि इस रसीद में दो बहनों का नाम दर्ज है। जिस समय इनके पैरेंट्स को नागरिकता प्रमाण पत्र जारी किया गया उस समय वे नाबालिग थीं। और बालिग होने के बाद भी उनके जीवन में कुछ नहीं बदला है।
मुझे पूरी प्रक्रिया समझनी पड़ेगी, फाइल देखनी होगी
नियम यह कह रहा-सिर्फ शत्रु संपत्ति पर अधिकार
भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है। जिसके अनुसार शत्रु संपत्ति पर भारत सरकार का अधिकार होगा। पाकिस्तान से 1965 में हुए युद्ध के बाद 1968 में शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम पारित हुआ था। इस अधिनियम के अनुसार जो लोग बंटवारे या 1965 में और 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता ले ली थी, उनकी सारी अचल संपत्ति ‘शत्रु संपत्ति’ घोषित कर दी गई।
उसके बाद पहली बार उन भारतीय नागरिकों को संपत्ति के आधार पर ‘शत्रु’ की श्रेणी में रखा गया, जिनके पूर्वज किसी ‘शत्रु’ राष्ट्र के नागरिक रहे हों। यह कानून केवल उनकी संपत्ति को लेकर है और इससे उनकी भारतीय नागरिकता पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है।
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