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बुजुर्ग दादी पूछ रही- कमाने वाला कोई नहीं बचा अब बच्चों को कैसे पालें
  • Written by - News Valley24 Desk
  • Last Updated: 2 जून 2021,  12:29 PM IST

सरकार सहायता से पहले प्रमाण मांगती है

दिनेश का कंधा बूढ़े मां-बाप का सहारा था, छोटे बच्चों को नींद उसी की गोद में आती थी। मगर अब परिवार में गम बचा है और सिर्फ चिंता भरा एक ही सवाल- छोटे बच्चों की परवरिश कैसे करें ? सरकारी मदद के नाम पर फिलहाल चावल मिलता है। दो छोटे बच्चों के इस परिवार में सिर्फ चावल से क्या होगा, करीब 1 महीने से बचत के कुछ रुपयों पर परिवार का पेट भर रहा है, कर्ज भी ले चुके हैं। ऐसा कितने दिन चल सकेगा ये परिवार भी नहीं जानता। ये परेशानी प्रदेश के हजारों परिवारों के साथ है जिन्होंने अपना सहारा कोरोना संक्रमण की वजह से खो दिया।





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5 साल की बेटी बोली- यीशू पापा के पास चले गए मेरे पापा
अब 5 साल की आराधना अपने भाई दिव्यांशु के साथ गुमसुम सारा दिन घर पर ही रहती है। दोस्तों के साथ खेलने में उसका मन नहीं लगा। इस साल दिनेश ने उसका स्कूल में दाखिला करने की सोची थी। आराधना भी स्कूल जाना चाहती है, तुतलाती जुबान में बोली मैं डॉक्टल बनूंगी, वो अच्छे लगते हैं। पिता के बारे में बच्ची ने मासूमियत से कहा- मेरे पापा यीशूपापा (यीशू मसीह) के पास चले गए। बेटा दिव्यांशू कक्षा दूसरी में एक प्रायवेट स्कूल में पढ़ता है, मगर अब उसकी पढ़ाई के खर्च का इंतजाम कैसे करें ये सोचकर परिजन परेशान हैं।





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बेबसी का आलम साबित करना इस परिवार के लिए नई मुसीबत
दिनेश की बूढ़ी मां इस आस में हर रोज पूरा अखबार पढ़ती हैं कि कहीं उन्हें ऐसी याेजना के बारे में पता चले जिससे उनके पोते-पोती की कुछ मदद हो सके। दिनेश की मां की ही तरह हजारों परिवार परेशान हैं। मदद तभी मिलेगी जब ये साबित हो सके कि मरने वाली की मौत का कारण कोरोना था। बेटे की मौत कोविड से ही हुई ये साबित करने के लिए मां ने कई दफ्तरों के चक्कर काटे, वकीलों से मिलीं। मगर अब तक बात नहीं बनी। सावित्री कहती हैं अब ये साबित कैसे करूं मेरी समझ में नहीं आ रहा, हम कहां जाएं इसकी प्रक्रिया क्या होगी ये भी कोई नहीं बता रहा।





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ऐसे परिवारों को देनी होगी स्थाई राहत
पेशे से वकील और समाज सेवी भगवानू नायक को जब दिनेश के परिवार के बारे में पता चला तो इन्होंने अपनी टीम के साथ इनकी आर्थिक मदद की। भगवानू ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकारों ने योजनाओं की घोषणा तो कर दी मगर दिनेश के परिवार की तरह हजारों लोग हैं जिन तक स्थाई मदद नहीं पहुंच रही। राज्य सरकार को ये साफ करना चाहिए कि आखिर कैसे और किस दस्तावेज के आधार पर दिनेश के बच्चों की तरह दूसरों की मदद कर पाएंगे। केंद्र सरकार की योजना का पूरी ईमानदारी से क्रियांवयन हो तो बात बनें, वरना धरातल पर क्या होता है सब जानते हैं।





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दस्तावेज के असमंजस पर बोले अफसर
यह तय है कि योजना का फायदा लेने के लिए कोविड मृत्यू प्रमाण जरूरी होगा। रायपुर की जिला रजिस्ट्रार ( जन्म एवं मृत्यु ) प्राची मिश्रा ने बताया कि अब तक डेथ सर्टिफिकेट में ये लिखने का प्रावधान ही नहीं है कि मौत कैसे हुई। मौत का कारण लिखा डेथ सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जाता। हां, पिछले कुछ दिनों से इस पर बात जरूर हो रही है क्याेंकि लोग कोविड डेथ साबित कैसे करेंगे ये सवाल हम तक पहुंच रहे हैं, मगर इस वक्त डेथ सर्टिफिकेट पर मौत की वजह लिखने का नियम नहीं है।





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जिला शिक्षा अधिकारी एएन बंजारा ने बताया कि कोरोना की वजह से अनाथ हुए बच्चाें को फ्री एजुकेशन देने के लिए हमें निर्देश मिले हैं। ऐसे बच्चों के आवेदनों में पैरेंट की मौत कैसे हुई, ये देखा जाएगा। हम अस्पताल से मिलने वाले दस्तावेजों की जांच करेंगे। हालांकि प्रमुख रूप से कौन-कौन से दस्तावेज योजना का लाभ लेने के लिए जमा करने होंगे इसके निर्देश हमें नहीं मिले हैं।





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क्या है योजना
पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन्स योजना से कोरोना की वजह से पैरेंट्स की मौत पर बच्चों को केंद्र की सरकार 18 वर्ष की आयु तक हर महीने वित्तीय सहायता देने और 23 वर्ष की आयु पूरी करने पर 10 लाख रुपए की राशि देगी। छत्तीसगढ़ में महतारी दुलार योजना शुरू हुई है इसके तहत प्रदेश की सरकार ऐसे बच्चों को 12वीं तक की स्कूली शिक्षा नि:शुल्क देगी। कक्षा पहली से 8वीं तक 500 रुपए प्रति माह और कक्षा 9वीं से 12वीं तक 1000 रुपए प्रति माह की छात्रवृत्ति दी जाएगी। बच्चों को प्रोफेशनल कोर्स के लिए कोचिंग की सुविधा भी मिलेगी। इसके लिए किस दस्तावेज के साथ आवेदन करना है ये सरकार ने नहीं बताया।





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हर संक्रमित की मौत कोरोना से ही हुई ये खुद सरकार नहीं मानती
छत्तीसगढ़ में वैसे तो पिछले 1 साल में 13077 कोरोना संक्रमितों की मौत हो चुकी है। मगर हर संक्रमित की मौत को सरकार कोरोना से मौत नहीं मानती। जैसे मंगलवार का ही ताजा उदाहरण लें तो पिछले 24 घंटे में 29 संक्रमितों की मौत हुई। मगर सरकार के मुताबिक इसमें सिर्फ 13 लोग ही कोरोना से मरे, बाकि के 16 लोगों को दूसरी बीमारियां थीं। सरकार के आंकड़ों का यह तकनीकी पेंच, बच्चों को मदद देने की योजना में बड़ी परेशानी भी साबित हो सकता है। क्योंकि इसे लेकर कोई साफ जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है।





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