सरकारी अस्पतालों में कॉटन व सर्जिकल ग्लव्स तक नहीं, 8 महीने से उधार लेकर चला रहे काम
ऐसे में जिले के सभी सरकारी अस्पताल अलग-अलग मदों के कर्जदार हो रहे हैं। काॅटन की किल्लत पूरी करने के लिए प्रभारियों को जहां जीवनदीप समिति से उधार तक लेना पड़ रहा है, वहीं सर्जिकल ग्लव्स की शार्टेज में जननी सुरक्षा योजना में दवाओं के लिए मिली राशि का उपयोग करना पड़ रहा है। जिला अस्पताल की सिविल सर्जन डॉ. पी बाल किशोर और तीनों खंड चिकित्सा अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है। सिविल सर्जन ने बताया कि सीजीएमएससी से सप्लाई नहीं होने के कारण पिछले 8 महीने में उन्होंने 3.40 लाख रुपए का काॅटन और 5.50 लाख का सर्जिकल ग्लव्स खरीदा है। यही नहीं जो दवाएं वहां से नहीं मिल पा रही हैं, उन्हें भी अलग-अलग मद से खरीद रहे हैं। इसके अलावा गर्भवतियों के लिए ऑक्सीटोसीन इंजेक्शन, एनेस्थीसिया देने वाली सीरिंज समेत जरूरी दवाइयों की आपूर्ति भी आठ महीने से रूकी हुई है। अस्पताल के साथ मरीजों परिजनों को भी खुद खर्च कर कई सामान लेना पड़ रहा।
गर्भवतियों के लिए जरूरी है ऑक्सीटोसीन इंजेक्शन
डिलीवरी में उपयोग में आने वाले ऑक्सीटोसीन इंजेक्शन की भी आपूर्ति सीजीएमएससी से नहीं की जा रही है। जबकि सभी सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी की सुविधा है। 90 प्रतिशत डिलीवरी में इस इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है। जिन अस्पतालों के पास अलग-अलग बजट होते हैं, वह इन्हें लोकल लेवल पर खरीद लेते हैं, जिनके पास नहीं, उन्हें खुद की जेब से या मरीजों को खरीदना पड़ता है। इससे परेशानी बढ़ रही।
एनेस्थीसिया देने वाली सीरिंज की भी आपूर्ति नहीं
अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीज को बेहोश करने के लिए जिस सीरिंज की जरूरत पड़ती है, वह भी सीजीएमएससी से पिछले 8 महीने से नहीं भेजी जा रही है। इन सामान्य व जरूरी वस्तुओं के लिए अस्पताल डिमांड भेज रहे हैं, तो वहां से उन्हें एनओसी दे रहे हैं। जरूरत के अनुसार देखें तो इस सीरिंज की हर अस्पताल में जरूरत पड़ती है। साल भर पहले चले तो सीजीएमएससी से इनकी आपूर्ति की जाती रही है।
अस्पतालों में बच्चों व बड़ों की दवाओं का भी शाॅर्टेज
सीजीएमएसीस से कंज्यूमेबल्स के साथ-साथ अस्पतालों में उपयोगी दवाएं भी नहीं भेजी जा रही है। वर्तमान में अस्पतालों में बड़ों के इलाज में सहयोगी एंटीबायोटिक एजीथ्रोमाइसिन और सिप्रो को छोड़कर कोई दूसरी नहीं है। बच्चों के लिए पैरासिटॉमाल, मेट्रोजील और एजीथ्रोमाइसिन सीरप ही उपलब्ध है। इलाज के लिए अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों को अन्य दवाएं खुले बाजार से खरीदनी पड़ रही है।
आय का जरिया नहीं, 21 पीएचसी और 9 यूपीएचसी में किल्लत
ग्रामीण व शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तो काॅटन और ग्लव्स की किल्लत ज्यादा हो गई है। क्योंकि इन्हें अलग से कोई बड़ा बजट नहीं मिलता है। आॅन लाइन फ्री ओपीडी होने से जीवन दीप समिति की आय भी खत्म हो गई है। ऐसे में ये काॅटन और ग्लव्स खरीद नहीं पा रही है। ऐसे में शहर में संचालित सभी 9 यूपीएचसी और जिले की 21 पीएचसी में स्टाफ की भी परेशानी बढ़ गई है।
सीजीएमएससी से ही काॅटन और ग्लव्स नहीं मिल रहा
पूरे 8 महीने हो गए हैं। सीजीएमएससी से काॅटन और सर्जिकल ग्लव्स तक नहीं दिया जा रहा है। यह अस्पताल में सबसे उपयोगी कंज्यूमेबल्स हैं, इसलिए मैं लोकल लेवल पर खरीद रहा हूं। अब तक 500 ग्राम की 2721 कॉटन और लगभग 1 लाख सर्जिकल ग्लव्स खरीदी जा चुकी है। इन वस्तुओं को अलग-अलग बजट से उधारी पर खरीदना पड़ रहा है। इसके अलावा भी अन्य कई जरूरी दवाइयां नहीं मिल रही है। उसे भी स्थानीय स्तर पर खरीदना ही पड़ रहा है।
-डॉ. पी बालकिशोर, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल
टेंडर फाइनल हो गया जल्द ही आपूर्ति शुरू होगी
आठ महीने से दवाओं की खरीदारी में अड़चन थी। जिसे लेकर विशेषज्ञों और अफसरों के बैठक हो गई है। कुछ आपूर्ति हुई है, जिसकी क्वाॅलिटी चेक हो रही है। जल्द ही हम सभी अस्पतालों मेंं आपूर्ति शुरू कर देंगे। इससे समस्या दूर हो जाएगी। कोरोना काल में काटन, ग्लव्स आदि की खरीदारी के लिए जरूरी बैठक नहीं हो पाई, इसलिए सभी जरूरी सामान की आपूर्ति बाधित हो गई थी। अब बैठक हो चुकी, जल्द ही व्यवस्था दुरुस्त हो जाएगी।
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