बारूद के ढेर बने कीव से निकलने में कामयाब हुई जांजगीर की छात्राएं, खाना-पीना छोड़ मां-बाप कर रहे हैं इंतजार
यूक्रेन के कीव शहर में फंसी छात्रा आकांक्षा तंबोली के पिता संतोष तंबोली ने दैनिक भास्कर को अपनी इकलौती बेटी की आपबीती सुनाई। बेटी की हालात बताते उनके आंख से आंसू निकल गए। उन्होंने बताया कि उसकी मां चंद्रकला तंबोली का रो-रोकर बुरा हाल है। 24 फरवरी से आकांक्षा अपनी कजिन मुस्कान तंबोली, सुमन पटेल सहित अन्य स्टूडेंट़स के साथ बंकर में रह रहीं थीं। उन्हें कुछ देर के लिए हॉस्टल में फ्रेश होने और नाश्ता करने के लिए जाने को मिलता था। सोमवार को आकांक्षा ने कर्फ्यू हटने की खबर दी और बंकर से निकलकर रेलवे स्टेशन जाने की बात कही। यह सुनकर अब उसके माता-पिता खुश हैं।
दिनभर में 250 मिली लीटर पानी पीकर करती थी गुजारा
संतोष तंबोली ने बताया कि राशन खत्म हो गया था। तब मैगी और पोहा बनाकर 250 मिली लीटर पानी पीकर दिन गुजार रही थी। सोमवार को रेलवे स्टेशन पहुंची, तब उसके वापस आने की उम्मीद नजर आई। परिवार के सब लोग खुश हैं। लेकिन, स्टेशन में उन्हें ट्रेन में बैठने नहीं दिया गया। इसके कारण उन्हें लविव स्टेशन तक दूसरी ट्रेन पकड़ना पड़ा। खुशी इस बात की है बारूद के ढेर से बच्ची निकल गई है।
जब से युद्ध की खबर आई थी रो-रोकर बुरा हाल था
आकांक्षा की मां चंद्रकला ने बताया कि जिस दिन युद्ध शुरू होने खबर आई थी, तब से वह बहुत परेशान थी। आकांक्षा से बात कर वह दिन भर उसका हाल चाल जानने की कोशिश करती थी। बात करने के बाद वह उसके ख्याल में दिन भर रोती रहती थी। आज उसके बंकर से बाहर निकलने और ट्रेन चढ़ने की खबर सुनकर वह काफी खुश हैं।
लविव में बिताई रात
संतोष ने बताया कि लगातार वह अपनी बेटी से बातचीत कर रही हैं। हर पल उसकी चिंता रहती है। सोमवार को कीव से किसी तरह निकलने के बाद वह लविव पहुंची, मंगलवार सुबह लविव से बॉर्डर जाने के लिए निकलेगी। अब बस यही उम्मीद है कि किसी तरह वह घर पहुंच जाए।
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