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-100जंघेल-100 ने तोड़ा था राजपरिवार का मिथक
  • Written by - News Valley24 Desk
  • Last Updated: 24 मार्च 2022,  12:10 PM IST

48 साल बाद पहली बार खिला था कमल, राजा देवव्रत सिंह की पत्नी पद्मा सिंह को दी थी शिकस्त

दरअसल, साल 1960 से 1993 के बीच हुए खैरागढ़ विधानसभा के चुनाव में हमेशा से रानी रश्मि देवी सिंह जीतती रहीं। उनके निधन से 1995 में सीट खाली हुई तो उपचुनाव में उनके ही बेटे देवव्रत सिंह ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1998 और 2003 के चुनाव में भी देवव्रत सिंह ने बाजी मारी। हालांकि इसके बाद का एक वक्त ऐसा भी था, जब देवव्रत सिंह ने संसदीय चुनाव लड़ा और एक बार फिर खैरागढ़ विधानसभा की सीट खाली हो गई।





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एक बार फिर साल 2007 में उपचुनाव की घोषणा हुई। इस बार कांग्रेस ने देवव्रत सिंह की पत्नी पद्मा सिंह को चुनाव मैदान में उतारा। वहीं भाजपा ने पहली बार कोमल जंघेल पर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया। बता भरोसे और जातिगत वर्चस्व पर आ गई। नारा दिया गया 'महल से हल टकराएगा और कोमल विधानसभा जाएगा...'। यह नारा उस दौर में खूब चला था। मतदान के बाद परिणाम आए तो उपचुनाव में जीत का सेहरा कोमल के सिर बंध चुका था।





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दो लोधियों में थी टक्कर, आम चुनाव में मिली थी जीत
इसके बाद 2008 के चुनाव में फिर से BJP ने कोमल जंघेल पर भरोसा जताया। तब उनके सामने कांग्रेस ने मोती लाल जंघेल को चुनाव मैदान में खड़ा किया। उस चुनाव में कोमल जंघेल को 62 हजार 437 और मोतीलाल जंघेल को 42 हजार 893 वोट मिले थे। इस तरह 19 हजार 544 वोटों से एक बार फिर कोमल जंघेल ने आम चुनाव में अपनी जीत दर्ज की। हालांकि 2013 के चुनाव में कांग्रेस के गिरवर जंघेल ने उन्हें 2190 वोट से शिकस्त दी।





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फिर हुई लगातार दूसरी बार हार
2018 के आमचुनाव में कोमल को लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा तब जोगी कांग्रेस से देवव्रत सिंह चुनाव मैदान में थे। यह हार भी काफी करारी थी। महज 870 वोटों से कोमल जंघेल पराजित हुए थे। मतगणना रात तक चली और खैरागढ़ विधानसभा का परिणाम सबसे आखिरी में आया था। इसमें देवव्रत को 61516 और कोमल को 60646 वोट मिले थे। जबकि सीटिंग एमएलए गिरवर जंघेल 31 हजार 811 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे।





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