टीमें कर रही जांच, क्या है मामला
दरअसल, 30 अप्रैल 2015 को जिला पंचायत बीजापुर से पंचायत सचिव के कुल 28 रिक्त पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। जिसे संसोधित करते हुए 27 पद स्वीकृत करते हुए दोबारा विज्ञापन पत्र जारी किया गया। आरोप है कि संशोधित विज्ञापन पत्र में तत्कालीन जिला पंचायत CEO के हस्ताक्षर हैं। लेकिन, जावक क्रमांक अंकित नहीं है और न ही सूचना का प्रकाशन सही तरीके से किया गया है। साथ ही संशोधित विज्ञप्ति जारी करने की नोटशीट में जिला पंचायत CEO की तरफ से अनुमोदन ही नहीं किया गया है।
ऐसा बताया जा रहा है कि, आरक्षण रोस्टर के नियमों को दरकिनार कर संशोधित विज्ञापन जारी किया गया था। कुछ अभ्यर्थियों ने वरीयता सूची में जगह पाने के लिए अवैध तरीके से फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र का भी सहारा लिया। नियम के अनुसार दावा आपत्ति निराकरण के बाद अंतिम वरीयता सूची को जिला पंचायत और जनपद पंचायत कार्यालय की सूचना पटल पर प्रकाशित किया जाना था, जो कि नहीं किया गया। जिससे पंचायत सचिव भर्ती प्रक्रिया में अपनाए गए पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं।
पूरी भर्ती प्रक्रिया में दावा आपत्ति निराकरण के बाद दो दिनांकों 6 जुलाई 2015 और 31 जुलाई 2015 को वरीयता सूची जारी की गई थी, जो बेहद संदेहास्पद है। आरोप है कि इस वरीयता सूची को भी जिला या फिर जनपद पंचायत के सूचना पटल पर चस्पा ही नहीं किया गया था। साथ ही पूर्व में जारी वरीयता सूची में चयनित अभ्यर्थियों के प्रवर्गों में भी संशोधन किया गया। भर्ती प्रक्रिया में पात्र अभ्यर्थियों को दरकिनार कर अपा़त्र अभ्यर्थियों को वरीयता सूची में जगह दिलाने आरक्षण रोस्टर नियमों का पालन नहीं किया गया था। अपने चहेते अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से पूरी भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं अपनाई गई थी।
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