नई सियासी साझेदारी या पुराना दांव? राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की संयुक्त रैली से बिहार की सियासत में नई हलचल
पटना, 27 अक्टूबर 2025।
बिहार की सियासी फिज़ा एक बार फिर गरमाने लगी है — और इस बार केंद्र में हैं दो ऐसे चेहरे जिनके गठजोड़ ने पहले भी राज्य की राजनीति को नए मोड़ पर पहुँचाया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव बुधवार 29 अक्टूबर से एक साथ चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं। मुजफ्फरपुर और दरभंगा में होने वाली दो संयुक्त रैलियों के साथ दोनों नेताओं की जोड़ी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए महागठबंधन अभियान का औपचारिक आगाज़ करेगी।
यह राहुल गांधी का इस चुनाव का पहला बिहार दौरा होगा, जो महागठबंधन की रणनीति के लिहाज़ से बेहद अहम माना जा रहा है। इस रैली के साथ विपक्ष यह संदेश देना चाहता है कि कांग्रेस और राजद की पुरानी दोस्ती अब पहले से ज़्यादा मज़बूत और समन्वित है।
🔶 राहुल-तेजस्वी की पहली साझा जनसभा: क्या बदलेगा समीकरण?
राहुल गांधी बुधवार को अपनी पहली सभा मुजफ्फरपुर के सकरा (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र में करेंगे। यहाँ महागठबंधन ने उमेश राम को मैदान में उतारा है। यह क्षेत्र उत्तर बिहार के उन इलाकों में आता है जहाँ दलित और पिछड़े मतदाता चुनावी परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके बाद राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी दरभंगा में मंच साझा करेगी, जहाँ वे महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए जनता से समर्थन की अपील करेंगे।
बिहार कांग्रेस के मीडिया विभाग प्रमुख राजेश राठौड़ ने बताया कि यह रैली सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि “जनसंपर्क यात्रा की वापसी” भी है। राहुल गांधी इससे पहले बिहार के विभिन्न इलाकों में 16 दिनों में 1300 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। राठौड़ के अनुसार, “अब यह चुनावी मैदान में राहुल जी की पहली बड़ी रैली होगी, जो महागठबंधन के लिए टोन सेट करेगी।”
🔶 243 सीटों पर दो चरणों में चुनाव, 14 नवंबर को मतगणना
बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर चुनाव दो चरणों में — 6 और 11 नवंबर को होंगे, जबकि 14 नवंबर को मतगणना होगी। कांग्रेस इस बार 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि 2020 में उसने 70 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। सीटों की संख्या में यह मामूली कमी पार्टी के अंदर आपसी तालमेल को मज़बूत करने की रणनीति के रूप में देखी जा रही है।
वहीं राष्ट्रीय जनता दल (RJD) इस बार 143 सीटों पर मैदान में है। इनमें से 51 सीटों पर भाजपा से सीधा मुकाबला, जबकि बाकी 91 सीटों पर एनडीए के अन्य घटक — जदयू, लोजपा (रामविलास), हम और वीआईपी — से सीधी टक्कर है।
दिलचस्प बात यह है कि महागठबंधन के घटक दलों के बीच 11 सीटों पर “फ्रेंडली फाइट” की स्थिति भी बनी हुई है, जो आगे चलकर गठबंधन की एकता पर असर डाल सकती है।
🔶 राहुल-तेजस्वी की जोड़ी: पुराने वादे, नए इरादे
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यह साझी रैली न सिर्फ विपक्ष के एकजुट होने का प्रतीक है, बल्कि यह युवा बनाम अनुभव के संघर्ष का भी संदेश देती है।
2020 के विधानसभा चुनाव में जहाँ तेजस्वी यादव महागठबंधन के एकमात्र चेहरा बनकर उभरे थे, वहीं इस बार राहुल गांधी की सक्रियता से कांग्रेस एक समान भागीदारी वाला साथी बनकर उभरना चाहती है।
राहुल गांधी का यह बिहार दौरा महागठबंधन के लिए “जनादेश की तैयारी का निर्णायक चरण” माना जा रहा है। कांग्रेस का इरादा है कि राहुल गांधी की सभाओं के ज़रिए बिहार में पार्टी की जमीनी मौजूदगी दोबारा दिखाई जाए।
🔶 NDA के लिए नई चुनौती या पुरानी रणनीति की वापसी?
एनडीए खेमे में भी इस रैली को लेकर सतर्कता बढ़ गई है। भाजपा और जदयू के रणनीतिकारों को अंदेशा है कि राहुल-तेजस्वी की जोड़ी उत्तर बिहार के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि “अगर महागठबंधन के दोनों बड़े चेहरे एक मंच पर लगातार दिखते हैं, तो इससे संदेश जाएगा कि विपक्ष बिखरा नहीं, बल्कि एकजुट है — और यही एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।”
🔶 निष्कर्ष
29 अक्टूबर से शुरू होने वाली राहुल गांधी की बिहार यात्रा सिर्फ एक चुनावी अभियान नहीं, बल्कि 2025 की सियासत की दिशा तय करने वाली रणनीति के रूप में देखी जा रही है।
क्या राहुल और तेजस्वी की जोड़ी बिहार की राजनीति में नया अध्याय लिख पाएगी, या फिर मतदाता एक बार फिर पुराने समीकरणों पर भरोसा करेंगे?
इसका जवाब तो 14 नवंबर को मतगणना के दिन ही मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि बिहार की सियासी जंग अब और दिलचस्प होने जा रही है।






