दिसम्बर 6, 2025

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गणेश उत्सव: महाराष्ट्र की मस्जिद में 45 वर्षों से विराजते हैं गणपति बप्पा, हिंदू-मुस्लिम एकता का अनोखा उदाहरण


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सांगली (महाराष्ट्र), 06 सितम्बर 2025।
जहां एक ओर देशभर में अक्सर धार्मिक मतभेदों की खबरें सुर्खियां बनती हैं, वहीं महाराष्ट्र का सांगली जिला सद्भाव और भाईचारे की मिसाल पेश करता है। यहां के गोटखिंडी गांव में पिछले 45 वर्षों से गणेश उत्सव मस्जिद के अंदर मनाया जाता है। गणपति बप्पा की मूर्ति मस्जिद में स्थापित होती है और इस आयोजन में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की सक्रिय भागीदारी होती है।


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कैसे शुरू हुई परंपरा

इस अनोखी परंपरा की शुरुआत वर्ष 1980 में हुई। उस समय लगातार हो रही भारी बारिश के कारण गणेश मूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए गांव के लोगों ने इसे मस्जिद के अंदर रखने का निर्णय लिया। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और तब से लेकर आज तक शांतिपूर्वक निभाई जा रही है।

गांव के झुंझार चौक में उसी वर्ष ‘न्यू गणेश तरुण मंडल’ की स्थापना हुई थी। मंडल के संस्थापक अशोक पाटिल बताते हैं कि तब से हर साल मस्जिद में गणपति की मूर्ति विराजती है।


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मुस्लिम समाज की सक्रिय भूमिका

गांव की कुल आबादी लगभग 15,000 है, जिसमें करीब 100 मुस्लिम परिवार शामिल हैं। ये परिवार गणेश उत्सव की तैयारियों, पूजा-अर्चना और प्रसाद बनाने में बराबरी से योगदान देते हैं।

इतना ही नहीं, जब कभी गणेश चतुर्थी और बकरीद की तारीखें एक साथ पड़ती हैं, तो मुस्लिम समाज अपने त्योहार पर केवल नमाज अदा करता है और कुर्बानी नहीं देता। वे हिंदू त्योहारों के दौरान मांसाहार से भी परहेज करते हैं।


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10 दिनों का उत्सव, अनंत चतुर्दशी पर विसर्जन

हर साल गणेश चतुर्थी से शुरू होकर यह परंपरा 10 दिनों तक चलती है। गणपति बप्पा मस्जिद में विराजते हैं और अनंत चतुर्दशी के दिन मूर्ति का विसर्जन स्थानीय जलाशय में कर दिया जाता है।

हर साल प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर स्थानीय पुलिस अधिकारी और तहसीलदार को भी आमंत्रित किया जाता है, जिससे यह कार्यक्रम सामाजिक और प्रशासनिक एकता का भी प्रतीक बन जाता है।


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सद्भाव का संदेश पूरे देश के लिए

गांव के लोगों का कहना है कि यहां का वातावरण पूरे देश के लिए धार्मिक और सामाजिक सद्भाव का संदेश देता है। अशोक पाटिल कहते हैं, “अन्य जगहों पर चाहे जैसा भी माहौल हो, हमारे गांव पर उसका कोई असर नहीं होता। यहां हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।”


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